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दिनांक 8 मार्च, 2025 को अंतर विश्वविद्यालय अध्यापक शिक्षा केंद्र, बीएचयू, वाराणसी में "ट्रेनिंग ऑफ़ ट्रेनर्स : इंटीग्रेशन ऑफ़ एआई इन टीचिंग-लर्निंग एंड रिसर्च” विषय पर छः दिवसीय कार्यशाला का समापन आई.यू.सी.टी.ई. परिसर में हुआ । समापन कार्यक्रम का शुभारम्भ मंगलाचरण व मां सरस्वती तथा महामना मदन मोहन मालवीय जी की प्रतिमा पर पुष्पांजलि एवं दीप प्रज्ज्वलन कर किया गया। यह कार्यशाला एआई टूल्स की मदद से शिक्षण, मूल्यांकन को विद्यार्थी केन्द्रित व शोध को गुणवत्तापूर्ण बनाने इत्यादि पर केन्द्रित रहा जिसमें प्रतिभागियों ने एआई टूल्स के उपयोग के अनुभव देश के विभिन्न हिस्सों से पधारे विशेषज्ञों से प्राप्त किया व अभ्यास किया। कार्यशाला के समापन सत्र के मुख्य अतिथि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी के एग्रीकल्चरल इकोनोमिक्स के प्रो. राकेश सिंह तथा विशिष्ट अतिथि राष्ट्रीय शैक्षिक योजना एवं प्रशासन संस्थान, नई दिल्ली के एसोसिएट प्रोफेसर, डॉ. अमित गौतम रहे। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता आईयूसीटीई  के निदेशक प्रो. पी.एन. सिंह ने की।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशनल प्लानिंग एंड एडमिनिस्ट्रेशन (एनआईईपीए) के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अमित गौतम ने तीन सत्रों में एआई के शिक्षा में उपयोग पर चर्चा की। पहले सत्र में डॉ. गौतम ने ‘एआई फॉर ऑटोमेटेड असेसमेंट्स’ पर व्याख्यान देते हुए उन्होंने एआई आधारित ग्रेडिंग और असेसमेंट टूल्स के साथ हैंड्स-ऑन अभ्यास कराया। उन्होंने बताया कि एआई का उपयोग शिक्षकों को छात्रों का मूल्यांकन करने में मदद कर सकता है। दूसरे सत्र में डॉ. गौतम ने ‘एआई-ड्रिवन फीडबैक और लर्निंग एनालिटिक्स’ पर व्याख्यान दिया और बताया कि एआई का उपयोग छात्रों के प्रदर्शन का विश्लेषण करने और उन्हें व्यक्तिगत प्रतिक्रिया देने में मदद कर सकता है। तीसरे सत्र में डॉ. गौतम ने ‘डिज़ाइनिंग एआई-एनेबल्ड फॉर्मेटिव एंड सम्मेटिव असेसमेंट्स’ पर व्याख्यान देते हुए कहा कि एआई का उपयोग क्विज़, असाइनमेंट, और प्रदर्शन ट्रैकिंग सिस्टम बनाने में मदद कर सकता है।
मुख्य अतिथि प्रो. राकेश सिंह ने वैश्विक स्तर पर कृषि के जीवनयापन और रोजगार सृजन में महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि कृषि का महत्व बढ़ रहा हो या घट रहा हो परन्तु यह आज भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। शिक्षकों के सामने चुनौती है कि वे छात्रों को कक्षा में आकर्षित करें और उनका ध्यान बनाए रखें, जिसके लिए उन्हें तकनीकी और विषय सामग्री दोनों में अद्यतन रहना आवश्यक है। शिक्षकों को तकनीकी प्रगति से परिचित होना चाहिए। नैतिकता और भावनाओं में गिरावट के बावजूद, शिक्षकों को पारंपरिक और आधुनिक दृष्टिकोण का समन्वय करना चाहिए, जिससे वे छात्रों से जुड़ सकें और प्रभावी रूप से ज्ञान का प्रसार कर सकें।
विशिष्ट अतिथि डॉ. अमित गौतम ने जोर देकर कहा कि शिक्षण और अधिगम में प्रौद्योगिकी का एकीकरण व्यक्तिगत प्रयासों के माध्यम से किया जा सकता है। प्रौद्योगिकी की व्यापक उपलब्धता के कारण अब छात्रों से जुड़ना पहले से कहीं अधिक आसान हो गया है। हालाँकि, जैसे-जैसे शिक्षार्थी तकनीकी रूप से अधिक कुशल होते जा रहे हैं, शिक्षकों के लिए तकनीकी प्रगति के साथ तालमेल बनाए रखना एक चुनौती बन गया है। उन्होंने कहा कि शिक्षकों को न केवल नई तकनीकों को सीखना चाहिए, बल्कि उन्हें अपने विद्यार्थियों के साथ सक्रिय रूप से साझा भी करना चाहिए। प्रौद्योगिकी में दक्षता प्राप्त करने के लिए निरंतर अभ्यास, पुनरावृत्ति और व्यावहारिक अनुभव की आवश्यकता होती है।


केंद्र के निदेशक प्रो. प्रेम नारायण सिंह ने कहा कि यह नया केंद्र है और हम सब साथ मिलकर आगे बढ़ रहे हैं। उन्होंने आगे कहा कि आपके विचार ही आपके व्यक्तित्व को दर्शाते हैं। हमें कभी भी केवल समस्या ही नहीं बल्कि समाधान पर भी विचार करना चाहिए। अच्छा शिक्षक वही है जो समाधान की तरफ भी देखे और कर्तव्य परायणता को ध्यान में रखकर जीवन मूल्य पर चले।


इस छः दिवसीय कार्यशाला में कश्मीर, गोवा, महाराष्ट्र, असम, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश सहित दस से अधिक राज्यों के सहायक आचार्य, सह-आचार्य प्रतिभाग किया। इस कार्यशाला में केंद्र के डॉ. दीप्ति गुप्ता, डॉ. सुनील कुमार त्रिपाठी, डॉ. अनिल कुमार सहित शैक्षणिक व गैर-शैक्षणिक कर्मचारी उपस्थित रहे। अतिथियों का स्वागत प्रो. अजय कुमार सिंह, कार्यशाला का संचालन व समन्वयन व धन्यवाद डॉ. राजा पाठक ने किया।

रिपोर्ट- धनेश्वर साहनी

 

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